इतिहास लिख रहा है
जिसकी गौरव गाथा ।
लोरी दे सुला चुकी जिसको धरती माता ।।
ऐसा युग पुरूष न जाने फिर कब आएगा ।
जो जन-जन की आत्मा में
घुल रम जायेगा ।।
सबसे विराट जनतंत्र
जगत का आ पहुंचा ।
तैंतीस कोटि हित सिंहासन तैयार करो ।।
अभिषे के आज राजा का नहीं प्रजा का है ।
तैंतीस कोटि जनता के
सिर पर मुकुट धरो ।।
सुखाड़िया जी को भूतपूर्व नहीं
अभूतपूर्व मुख्यमंत्री कहो!
... बृजसुन्दर शर्मा