सुखाड़िया जी के स्वर में इन्दुबाला जी का परिचय
मुझे वह दिन भी याद आता है जब मैं पकड़कर जेल ले जाया गया था। उन दिनों मश्रुवालाजी के हरिजन सेवा संघ द्वारा एक विज्ञप्ति निकाली गई थी जिसमें लिखा गया था कि रेल की पटरी हटा दो, तार काट दो क्योंकि हमें अंग्रेजों को हिन्दुस्तान से निकालता है। इसलिये इस वक्त सब तरह का विद्रोह हमें करना चाहिये। उन्होंने अपने हस्ताक्षरों से उस विज्ञप्ति को जितनी प्रजामण्डल की शाखायें थी, उन सबके पास भेज दिया था। इसका मतलब यह था कि वे लोग तार काटें, रेल की पटरियां उखाड़ दें, यह सब काम करें। उसके बाद पुलिस के लोगों के हाथों में यह परिपत्र पहुंच गया। यह पहुंचने पर मेरी गैर मौजूदगी में मेरी पत्नी के पास बहुत से लोग ये। ऑफिसर्स भी गये और कई तरफ से समाचार भेजा गया कि इस प्रकार की विज्ञप्ति का परिणाम मेरा ‘‘ट्रान्सपोर्टेशन’’ हो सकता है, देश निकाला हो सकता है, फांसी की भी सजा हो सकती है। ऐसी हालत में मेरी पत्नी से कहा गया कि वह जेल में जाकर मुझे समझाये कि मैं माफी मांग लूं जिससे कि इस प्रकार की कोई कार्यवाही मेरे खिलाफ न हो पाये।
मेरी पत्नी ने उन मिलने वालों से कहा कि अच्छी बात है, मुझे एक बार उनसे मिला दीजिये। मुझे याद आता है कि मेरी पत्नी मुझसे जेल में मिलने के लिये आयी और जब दूसरे अफसर बीच में खड़े थे तो उसने कहा कि बीच में न रहो, मुझे अकेले में इनसे बात करनी है, जरूरी बात करनी है तो अफसर लोग चले गये। तब मैं भी सुनकर आश्चर्यचकित हो गया और मुझे इससे बड़ी ताकत भी मिली। मेरी पत्नी ने कहा कि मुझसे आकर अफसर लोग इस प्रकार की बात कह रहे है। जिन्दगी में चाहे कुछ भी हो जाये, जिस रास्ते पर चले हो, माफी मांगना तो क्या, किसी भी तरह का पश्चाताप करने की जरूरत नहीं है। जो भी कष्ट सामने आयेगा, मैं उसको बाहर रहकर उठाऊंगी, हमेशा के लिये इसको अपना सौभाग्य समझूंगी। उस दिन को मैं अपने जीवन में कभी नहीं भूल सकता और मैं ऐसा समझता हूं कि अगर पत्नी उस वक्त कैसी भी कोई कमजोरी दिखाती तो मेरे लिये एक समस्या बनती, दिमाग में रहते हुये वजन होता लेकिन इस प्रकार की भावनाओं और दृढ़ता की वजह से जेल में डेढ़ वर्ष निकालना मेरे लिये एक आसान काम हो गया। मेरी जिन्दगी में भी समय-समय पर जो मुश्किलें आई उनमें हमेशा जिस साहस का परिचय दिया मेरी पत्नी ने, वह एक बड़े संबल के कारण बन गया चाहे वह मिनिस्ट्री में आने के बारे में हो और क्षेत्र में हो। इस प्रकार घरेलू दृष्टि से मैं एक बहुत सुखी व्यक्ति रहा हूँ जिसे घर की परेशानी के बारे में नहीं सोचना पड़ा। यहां तक कि जब मैं जेल में था, मेरी पत्नी एक अध्यापिका का काम करके मेरी मां और अपनी बच्ची का पालन करने के लिये तत्परता से लगी हुई थी और उन्होंने सब कष्टों को सहन किया लेकिन जीवन में किसी भी प्रकार का असर नहीं आने दिया।