देश प्रदेश की महान विभूतियाँ - श्री सुखाड़िया जी के शब्दों में
महात्मा गांधी
राजनीति में मेरे संस्कार बचपन में पिताजी की वजह से पड़े थे। पिताजी पर गांधीजी की विचारधारा का असर हुआ था। इसी वजह से वे घर में उठते बैठते, जो लोक उनके पास आते थे, उनके सामने भी गांधीजी के व्यक्तित्व के बारे में, देश की आजादी के बारे में काफी चर्चा किया करते थे।
पं. जवाहरलाल नेहरू
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मैं जब 1954 में मुख्यमंत्री चुना गया तो पण्डितजी के दिल में इस बात का पूरा भरोसा नहीं था कि राजस्थान की उलझी राजनीति को मैं सम्भाल भी पाउंगा या नहीं।
जब मैनें आत्म विश्वास के साथ उनसे कहा कि सबका परिणाम ठीक आने वाला है, राजस्थान में कांग्रेस विजयी होगी, मैनें उनके चेहरे पर एक भरोसे का भाव अनुभव किया।
हम कांग्रेस जन काफी तादाद में 1957 के चुनाव में जीत कर आये। उसके बाद पण्डितजी के दिन में न सिर्फ यह अनुभव हुआ कि राजस्थान में कांग्रेस सफल हुई, बल्कि जहां तक मैं समझ पाया हूं और जैसा कि उन्होंने कुछ जगह विचार भी प्रकट किये, उनके दिल में तसल्ली हुई कि एक नौजवान भी राजनीति के क्षेत्र में प्रदेश का सम्मान रख सकता है। उनका एक स्नेहभाव बना रहता था। मैं यह देखता था कि वह एक बच्चे की तरह कभी-कभी जो बात उनको पसन्द नहीं आती, वे साफ कह भी दिया करते थे। लेकिन कुल मिलाकर हमेशा प्रेरणा देने का, एक विचार, एक इरादा उनकी तरफ से आता रहता था।
पण्डितजी की कल्पना आज भी मेरे दिमाग के अंदर घूमती है। चीन का जब आक्रमण हुआ तो उस आक्रमण के मौके पर मुझे याद आता है वह दिन, जब मैं उनसे मिलने के लिये सेक्रेटेरियट के अंदर गया और मैने कहा कि पण्डितजी, इस वक्त आप क्या चाहते है कि क्या हो! एक तरफ पाकिस्तान कश्मीर के नाम पर हमें एक तरह से चुनौती दे रहा है, धमकी दे रहा है। इंग्लैण्ड और अमेरिका इस बात पर जोर दे रहा है कि कश्मीर के सम्बन्ध में समझौता किया जाना चाहिये, तो मैनें उनसे कहा कि आप क्या सोचते हैं। पण्डितजी ने तेज चेहरे से एक ही जवाब दिया कि टूट जाना हम पसन्द करेंगे लेकिन झुककर कश्मीर या और कोई चीज देने वाला फैसला हम नहीं कर सकते। शस्त्र होंगे, शस्त्र से लड़ेंगे। नहीं होगा, और तरह से लड़ते रहेंगे लेकिन सिर नहीं झुकायेंगे। वे हमेशा इस बात को सामने रख कर चलते थे कि झुकना एक तरह से न केवल देश के लिये अहितकर है बल्कि मानव को नीचे गिरा देता है। इसलिये जहां स्वाभिमान का प्रश्न हो, वहां हर प्रकार का त्याग करके भी मुकाबला करने के लिये तैयार रहना चाहिये।
सरदार वल्लभ भाई पटेल
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जब वे उदयपुर में इस राज्य के उद्घाटन के अवसर पर आये तो उस समय मुझे उनकी जो दृढ़ता है, उसका आभास मिला। लेकिन उनको समझने का, वे किस प्रकार सार्वजनिक जब वे उदयपुर में इस राज्य के उद्घाटन के अवसर पर आये तो उस समय मुझे उनकी जो दृढ़ता है, उसका आभास मिला। लेकिन उनको समझने का, वे किस प्रकार सार्वजनिक कार्यकर्ताओं का सम्मान करते है, इस बात को देखने का अवसर तब प्राप्त हुआ जब एक बार पुराना राजस्थान बनने के बाद भारत सरकार की तरफ से मुख्य सचिव के पद पर श्री जैन को नियुक्त कर दिया गया। हम लोगों ने, जो कि पुराने राजस्थान के मंत्रिमण्डल में थे और जिनके नेता श्री माणिक्यलाल वर्मा थे, इस बात को ठीक नहीं समझा कि बाहर से मुख्य सचिव थोप दिया जाय। इस हालत के बावजूद इसके कि मुख्य सचिव सारे सामान के साथ उदयपुर पहुंच चके थे, हमने भी निश्चय किया कि हम दिल्ली जायें। दिल्ली पहुंच कर सरदार वल्लभ भाई पटेल के पास पहुंचे और उनसे कहा कि हम जानते हैं कि आपके आदेश से मुख्य सचिव हमारे यहां पर आये है, फिर भी यह हमारे सम्मान का प्रश्न है। आपको हमारी बात स्वीकार करना चाहिये। कई दृढ़ व्यक्ति भी उनसे मिलने में झिझकते थे लेकिन हमें देखकर खुशी हुई कि जब हमने इस बात को उनके सामने रखा कि यह हमारे सम्मान का प्रश्न है तो उन्होने यही कहा कि प्रशासनिक दृष्टि से परिवर्तन नहीं करता लेकिन क्योंकि तुम लोगों ने यह निश्चय कर लिया है और सारे लोग इस बात को जान गये है कि तुम्हारा यह निश्चय है, मैं मुख्य सचिव को तत्काल वहां से वापस बुला लेता हूं। जिसको हम चाहते थे, उसको मुख्य सचिव उन्होंने नियुक्त करने दिया।
उसके बाद जो दूसरा अवसर मुझे निकट से प्राप्त हुआ, वह बड़ा राजस्थान बनने के बाद मुख्यमंत्री की नियुक्ति के सम्बन्ध में था कि मुख्यमंत्री कौन बने।
श्री जयनारायण व्यास
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श्री जयनारायण व्यास का नाम मैं काफी अर्से से सुनता रहा हूं। हम निकट सम्पर्क में आये उसके पहले भी जोधपुर में एक दृढ़ नेता के रूप में, संघर्ष करने वाले नेता के रूप में उनके बारे में मेवाड़ में भी चर्चा चला करती थी। देश में भी उनका सम्मानीय स्थान था। जब राजस्थान में एकीकरण का अवसर आया तो उस अवसर पर हम लोगों का झुकाव ज्यादा से ज्यादा श्री जयनारायण व्यास की तरफ था।
इसके बाद जब श्री जयनारायण व्यास का मंत्रिमण्डल बना तो उसमें मुझे भी उन्होंने काम करने का अवसर दिया और आम चुनाव के पहले मैं उनके साथ काफी अर्से तक काम करता रहा।
श्री जयनारायण व्याय 1952 के आम चुनाव में खड़े हुए थे लेकिन दुर्भाग्य से वे हार गये। उनके हारने के बाद मंत्रिमण्डल बनाने का प्रश्न खड़ा हुआ। शायद आज कुछ व्यक्ति, जो पुराने है, वे तो इस बात को जानते है लेकिन बहुत से शायद न जानते हो कि हमारे राजस्थान के वरिष्ठ नेता और कई व्यक्ति ज्यादातर इस राय के थे कि कांग्रेस का बहुमत चाहता है कि मैं नेतृत्व का भार संभालू।